Moral story ईमानदार लकड़हारा

 ईमानदार लकड़हारा


एक बार की बात है

एक गरीब लकड़हारा था जो जंगल के पास एक छोटे से गाँव में रहता था। वह हर दिन जंगल में लकड़ियाँ काटने जाता था और उन्हें बाज़ार में बेचकर अपना जीवन यापन करता था।


एक दिन, नदी के पास लकड़ियाँ काटते समय उसकी कुल्हाड़ी उसके हाथ से फिसलकर गहरे पानी में गिर गई। लकड़हारा बहुत परेशान था क्योंकि वह नई कुल्हाड़ी नहीं खरीद सकता था। वह नदी के किनारे बैठ गया और मदद के लिए प्रार्थना करने लगा।


अचानक, एक सुंदर परी प्रकट हुई। उसने पूछा, "प्यारे लकड़हारे, तुम इतने उदास क्यों हो?"


लकड़हारे ने अपनी स्थिति बताई। परी मुस्कुराई और बोली, "चिंता मत करो, मैं तुम्हारी मदद करूँगी।" वह नदी में कूद गई और एक चमकदार सुनहरी कुल्हाड़ी ले आई।


"क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?" उसने पूछा।


लकड़हारे ने सुनहरी कुल्हाड़ी को देखा और कहा, "नहीं, यह मेरी नहीं है।"


परी नदी में वापस गई और एक चांदी की कुल्हाड़ी लेकर लौटी। "क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?" उसने फिर पूछा।


लकड़हारे ने अपना सिर हिलाया और कहा, "नहीं, यह भी मेरी नहीं है।"


अंत में, परी ने एक पुरानी लोहे की कुल्हाड़ी निकाली। "क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?" उसने पूछा।


लकड़हारे का चेहरा खुशी से चमक उठा। "हाँ, यह मेरी कुल्हाड़ी है!" उसने कहा।


परी लकड़हारे की ईमानदारी से खुश हुई। उसने कहा, "क्योंकि तुम ईमानदार हो, इसलिए मैं तुम्हें तीनों कुल्हाड़ी दूँगी- सोने की, चाँदी की और तुम्हारी अपनी लोहे की कुल्हाड़ी।"


लकड़हारे ने परी को धन्यवाद दिया और खुशी-खुशी घर चला गया। उस दिन से, वह एक बेहतर जीवन जीने लगा, हमेशा ईमानदारी को महत्व देता रहा।


कहानी की सीख:

ईमानदारी हमेशा पुरस्कृत होती है।

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