भगवान शिव के जन्म की कहानी

 


भगवान शिव के जन्म की कहानी अनोखी है, क्योंकि उन्हें अक्सर जन्म और मृत्यु से परे, शाश्वत रूप से विद्यमान माना जाता है। शिव पुराण में, एक कथा है जो पारंपरिक जन्म कथा के बजाय उनके कालातीत स्वभाव पर जोर देती है।

एक लोकप्रिय कथा भगवान शिव के प्रकाश के एक दीप्तिमान स्तंभ के रूप में प्रकट होने के बारे में है, जिसे ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है। यह कहानी उनके शाश्वत अस्तित्व और सर्वोच्च शक्ति को उजागर करती है। ब्रह्मा और विष्णु, त्रिदेवों के बीच सर्वोच्चता निर्धारित करने की अपनी खोज में, शिव की असीम प्रकृति का प्रतीक, प्रकाश के इस अनंत स्तंभ का सामना करते हैं। दोनों देवता इस प्रकाश का अंत खोजने का प्रयास करते हैं, लेकिन असफल हो जाते हैं, उन्हें एहसास होता है कि शिव समय और स्थान से परे हैं।

शिव पुराण की यह कहानी शिव की शाश्वत उपस्थिति, ब्रह्मांडीय संहारक और पुनर्योजी के रूप में उनकी भूमिका को दर्शाती है, और उनकी सर्वव्यापकता और सर्वशक्तिमानता को रेखांकित करती है। यह शिव द्वारा धारण की गई दिव्य चेतना के अनंत और अपरिवर्तनीय पहलू की एक गहन याद दिलाती है।

दिलचस्प है, है न? भगवान शिव की कालातीत प्रकृति वास्तव में उन्हें अलग बनाती है।

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